PATRA MUDRA ! पत्र-मुद्रा(निर्गमन के सिद्धांत एंव भारत की वर्तमान मुद्रा प्रणाली)
पत्र-मुद्रा का अर्थ
पत्र-मुद्रा विशेष किस्म के कागज पर छपा हुआ एक प्रतिज्ञा पत्र होता है जिसमें निर्गमन अधिकारी -सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक वाहक को माँगने पर उसमें लिखित राशि देने का वचन देता है।यह पत्र माँग पर देय होता है। पत्र-मुद्रा प्रायः एक निश्चित विधान के अन्तर्गत निर्गमित की जातीं है।और इसके पीछे केन्द्रीय बैक दवरा नियमानुसार स्वर्ण अथवा विदेशी प्रतिभूतियां कोष में रखी जाती है।
paper money |
पत्र-मुद्रा के गुण -
☆ लोचदार- पत्र मुद्रा की माँग एंव पूर्ति में समायोजन करना सरल होता है क्योंकि पत्र मुद्रा की पूर्ति को समय उर आर्थिक विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप आसानी से घटाया-बढ़ाया जा सकता है।
☆ भुगतान में सरलता- पत्र मुद्रा वजन में हल्की तथा गिनने में सुविधाजनक होने के कारण बड़े-बड़े भुगतान सरलतापूर्वक किए जा सकते हैं। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में सुविधा रहती है।
☆ बैंक व्यवस्था में सहायक- आज के वर्तमान युग में अधिकतर भुगतान ऑनलाइन किए जाते हैं इसी लिए आज के वर्तमान युग में बैंक का महत्व बहुत अधिक बड़ा है।
पत्र मुद्रा के दोष-
☆नष्ट होने का खतरा- पत्र मुद्रा के अंतर्गत सदैव कागज़ के नोटों के गलने, फटने, जलने आदि का भय बना रहता है आग, बर्षा, पानी आदि से इसके शीघ्र नष्ट हो जाने की संभावना बनी रहती है
☆ मुद्रा पूर्ति में परिवर्तन- पत्र मुद्रा के अंतर्गत मुद्रा पूर्ति में आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है अर्थात पत्र मुद्रा की मात्रा में आसानी से कमी या वृद्धि की जा सकती है इस कमी या वृद्धि का प्रभाव इसके मूल पर पड़ता है और पत्र मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी या वृद्धि होती रहती है
☆विमुद्रीकरण का भय- सरकार कभी भी पत्र मुद्रा का विमुद्रीकरण कर सकती है विमुद्रीकरण होने पर जनता को अत्यधिक कठिन हानि उठानी पड़ती है क्योंकि ऐसी दशा में पत्र मुद्रा का कुछ भी मूल नहीं रहता था पत्र मुद्रा पर सरकार का नियंत्रण होने के कारण जनता को सदैव ही विमुद्रीकरण का भय बना रहता है
(2)परिवर्तनशील पत्र मुद्रा - केंद्रीय बैंक तथा सरकार को अनुभव से यह ज्ञात होता है कि सभी व्यक्ति पत्र मुद्रा के बदले सोना या चांदी की मांग नहीं करते है अतःपत्र मुद्रा के पीछे सत प्रतिशत सोना या चांदी को कोष में रखने की आवश्यकता नहीं है इस प्रकार प्रतिनिधि पत्र मुद्रा के दोषों से मुक्त होने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है कि शत-प्रतिशत धातु कोष रखिए बिना ही पत्र मुद्रा का निर्गमन किया जा सके इस प्रकार ऐसी पत्र मुद्रा जिसके पीछे शत-प्रतिशत को उसके स्थान पर कि और कुछ प्रतिशत को रखकर मुद्रा का निर्गमन किया जाता है और मुद्रा निर्गमन अधिकारी को मांगने पर यह पत्र मुद्रा कोष कार्यालय में परिवर्तित करने की गारंटी देता है तो इस प्रकार की पत्र मुद्रा को परिवर्तनशील पत्र मुद्रा कहते हैं
pratiga patar |
पत्र मुद्रा के दोष-
☆नष्ट होने का खतरा- पत्र मुद्रा के अंतर्गत सदैव कागज़ के नोटों के गलने, फटने, जलने आदि का भय बना रहता है आग, बर्षा, पानी आदि से इसके शीघ्र नष्ट हो जाने की संभावना बनी रहती है
☆ मुद्रा पूर्ति में परिवर्तन- पत्र मुद्रा के अंतर्गत मुद्रा पूर्ति में आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है अर्थात पत्र मुद्रा की मात्रा में आसानी से कमी या वृद्धि की जा सकती है इस कमी या वृद्धि का प्रभाव इसके मूल पर पड़ता है और पत्र मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी या वृद्धि होती रहती है
☆विमुद्रीकरण का भय- सरकार कभी भी पत्र मुद्रा का विमुद्रीकरण कर सकती है विमुद्रीकरण होने पर जनता को अत्यधिक कठिन हानि उठानी पड़ती है क्योंकि ऐसी दशा में पत्र मुद्रा का कुछ भी मूल नहीं रहता था पत्र मुद्रा पर सरकार का नियंत्रण होने के कारण जनता को सदैव ही विमुद्रीकरण का भय बना रहता है
पत्र मुद्रा के प्रकार
(1) प्रतिनिधि पत्र मुद्रा- प्रतिनिधि पत्र मुद्रा पत्र मुद्रा के विकास की प्रथम अवस्था थी वह पत्र मुद्रा जिसकी निर्गमन के पीछे सत प्रतिशत सोना या चांदी रक्षित कोष में रखा जाता है और सरकार उसे सोने अथवा चांदी में बदलने की गारंटी देती है तो उसे प्रतिनिधि पत्र मुद्रा कहा जाता है जो कि यह पत्र मुद्रा बहुमूल्य धातुओं सोने चांदी का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए इसका नाम प्रतिनिधि पत्र मुद्दा रखा गया इस प्रकार की पत्र मुद्रा का निर्गमन का प्रमुख उद्देश्य एवं मूल्यों को घिसने से बचाना तथा पत्र मुद्रा में जनता के प्रति विश्वास उत्पन्न करना था
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