Posts

Showing posts from September, 2018

SHARES (Equity shares and preference shares)

Image
अंश SHARE share and debencatrs कंपनी  के अंश पूंजी की छोटी से छोटी एक विभाज्य ईकाइ को अंश कहते हैं अंश पूंजी वाली कंपनी की पूंजी को एक निश्चित राशि के जिन हिस्सों में बांटा जाता है उन्हें  अंश कहते है।जैसे, यदि एक कंपनी के अंश पूंजी ₹200000 है और इसे 100-100 के 2000 हिस्सों में बांटा गया है तो इस प्रत्येक हिस्से को अंश कहते है। समता अंश  (Equity Shares) अंशो द्वारा सीमित कंपनी  कि  दशा में समता अंश पूंजी वह है जो पूर्व अधिकार अंश पूंजी नहीं है समता अंश पर लाभांश कंपनी के विभाजन योग्य लाभ में से पूर्वाअधिकार अंश धारियों को लाभांश बांटने के बाद मिलता है और यदि इस बंटवारे के इस बंटवारे के बाद  लाभांश नहीं बचता है तो इन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता है इनके लाभांश की दर संचालकों के द्वारा निर्धारित की जाती है समता अंश धारी कंपनी के प्रबंध में सक्रिय भाग लेते हैं मताधिकार के द्वारा संचालन मंडल चुनते हैं और वार्षिक सामान्य सभा के द्वारा कंपनी पर नियंत्रण रखते हैं वस्तुतः समता अंश धारी कंपनी के वास्तविक स्वामी होते हैं पूर्वाधिकार अंश  ( Preference Shares ) पूर्व अधिकार

साझेदारी (partnership) Introduction, Admission of a new partner, Death of a partner, Dissolution of partnership.. 🍁

Image
साझेदारी का आशय व्यवसाय को सुचारु रुप से चलाने के लिए साझेदारी का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है साझेदारी का कार्य सुचारु रुप से चलाने एवं उसके उद्देश्य प्राप्त करने में साझेदारी संबंधी लेखांकन का विशेष स्थान है साझेदारी संबंधी लेखांकन के विस्तृत से अध्ययन के पूर्व इसकी परिभाषा आदि का ज्ञान आवश्यक है    व्यापारिक और अव्यापारिक साझेदारी (Trading and Non-trading Partnership)- साझेदारी का मुख्य का निर्माण करना या माल का क्रय विक्रय होता है उसे व्यापारिक साझेदारी कहा जाता है और जो साझेदारी सेवाएं देने के लिए होती है उसे व्यापारिक साझेदारी कहा जाता है जैसे सार्वजनिक पुस्तकालय, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की साझेदारी, आदि साझेदारी के आवश्यक लक्षण ☆ दो या दो से अधिक व्यक्ति का होना - साझेदारी के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि एक व्यक्ति स्वयं साझेदार नहीं बन सकता है यदि सामान्य साझेदारी में सदस्यों की संख्या 20 से अधिक तथा बैंकिंग व्यवसाय में लगी साझेदारी में साझेदारों की संख्या 10 से अधिक होती है तो सारी सारी अवैध हो जाती है ☆   कारोबार का उद्

PATRA MUDRA ! पत्र-मुद्रा(निर्गमन के सिद्धांत एंव भारत की वर्तमान मुद्रा प्रणाली)

Image
पत्र-मुद्रा का अर्थ   पत्र-मुद्रा  विशेष किस्म के कागज पर छपा हुआ एक  प्रतिज्ञा पत्र  होता है जिसमें निर्गमन अधिकारी -सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक वाहक को माँगने पर उसमें लिखित राशि देने का वचन देता है।यह पत्र माँग पर देय होता है। पत्र-मुद्रा प्रायः एक निश्चित विधान के अन्तर्गत निर्गमित की जातीं है।और इसके पीछे  केन्द्रीय बैक दवरा नियमानुसार स्वर्ण अथवा विदेशी प्रतिभूतियां कोष में रखी जाती है। paper money पत्र-मुद्रा के गुण - ☆ लोचदार - पत्र मुद्रा की माँग एंव पूर्ति में समायोजन करना सरल होता है क्योंकि पत्र मुद्रा की पूर्ति  को समय उर  आर्थिक विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप आसानी से घटाया-बढ़ाया जा सकता है। ☆ भुगतान में सरलता - पत्र मुद्रा वजन में हल्की तथा गिनने में सुविधाजनक होने के कारण बड़े-बड़े भुगतान सरलतापूर्वक किए जा सकते हैं। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में  सुविधा रहती है। ☆ बैंक व्यवस्था में सहायक - आज के वर्तमान युग में अधिकतर  भुगतान ऑनलाइन किए जाते हैं इसी लिए  आज के वर्तमान युग में बैंक का महत्व बहुत अधिक बड़ा है। pratiga patar

लेखाकर्म का आशय (Meaning of ACCOUNTANCY )

Image
लेखाकर्म  का आशय वित्तीय स्वभाव के सौदों एंव घटनाओं के मौद्रिक रुप का लेखा करने एंव वर्गीकरण करने तथा सूक्ष्म बनाने से है।ताकि बाहरी व्यक्तियों के साथ सम्बध सही रूप में ज्ञात किये जा सकें, एक निश्चित अवधि का लाभ-हानि निर्धारित हो सकें एंव एक अवधि विशेष के अन्त की वित्तीय स्थिति का पता चल सकें और इनके परिणामों से उचित निष्कर्ष निकाले जा सकें । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि लेखाकर्म पुस्तपालन

पुस्तपालन का आशय (Meaning of Book-Keeping)

Image
       जब कोई  पुस्तक क्रय की गयी है तब क्रेता ने इसके लिए एक राशि विक्रेता को दी है। या यदि क्रेता का खाता विक्रेता के यहाँ है। तो इसका भुगतान बाद में कर दिया जायेगा । तो इस प्रकार के मूल्य में हस्तान्तरण को सौदा कहा जाता है। यदि क्रेता ने यह किताब उधार ली है।तो इसके भुगतान के समय एक सौदा और होगा । सौदे इतने अधिक एवं इतने जटिल होते है। कि उन्हें याद रखना कठिन होता है। इन सौदो के मौद्रिक रुप को लिख लिया जाता है। इन्ही लेखों को पुस्तपालन कहा जाता है।